वो दोस्ती

वो दोस्ती मेरा भी कोई बहुत खास था जिस पर मुझे बहुत नाज़ था जो भी बातें होती थी दिल में उसे मैं सब कुछ बताया करता था उसकी भी सुनता और अपनी भी सुनाया करता था उससे मैं सब कुछ सांझा करता था जो बात किसी से ने कहता वो राज भी उसके सामने खोला करता था सुबह उसके बातो से शुरू होती मेरी रातें उसके शुभ रात्रि बोलने से होती थी हम दोनों की दोस्ती बहुत गहरी थी उसके गुस्से के सामने हार जाया करता था पता नहीं किसकी नज़र लग गई इस दोस्ती को जुदा हो गए दोनो , जो कभी एक दूसरे में खुद को देखा करते थे नजरो से दूर हो गये हम दोनों