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Showing posts from December, 2024

तेरी यादों का मौसम

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 तेरी यादों का मौसम कभी बन जाती हैं सुकून मेरे दिल का, कभी यूं पल-पल मुझे तड़पाती हैं। तेरी बातें जब भी याद आती हैं, मेरी मुस्कान के साथ आँखें बह जाती हैं। तू दूर होकर भी मुझमें कहीं रहती है, हर लम्हा तेरी ही तस्वीर खिंचती है। तेरे बिना जिंदगी जैसे अधूरी किताब, जिसके पन्नों पे बस तन्हाई लिखी है। वो शामें, जब तेरा हाथ मेरे हाथों में था, वो बातें, जो तेरी हँसी के साथ बरसी थीं। वो ख्वाब, जो तेरे साथ बुनता था मैं, अब बिखरे पड़े हैं, जैसे यादों में फंसे हो। कभी तेरे जाने का इल्ज़ाम खुद पर रखता हूँ, कभी किस्मत को दोष देकर चुप हो जाता हूँ। तेरे लौट आने की उम्मीद नहीं है, फिर भी सोचता हूँ, फिर खामोशियों की चादर ओढ़कर सो जाता हूँ। तू थी तो बहारें भी खिलखिला उठती थीं, अब वीराने हैं, जो चीखते से लगते हैं। तू पास थी तो मैं मुकम्मल था खुद में, अब साँसे भी अधूरी सी लगती हैं। तेरी यादों का ये मौसम थमता नहीं है, हर दिन, हर रात मुझे रुला जाता है। मैं जिंदा हूँ तुझसे दूर होकर भी, पर ये दिल तुझे हर लम्हा पास बुला जाता है। तू छोड़ गई पर छोड़ न सकी मुझको, तेरी यादें ही मेरा वजूद बनाए रखती हैं। कभी सुकू...

ख़ामोश लफ्ज़ों का शोर

 ख़ामोश लफ्ज़ों का शोर ग़म के साए में खुद को छुपा लेता हूँ, दिल की किताबों को मैं जला देता हूँ। जो लफ़्ज़ जुबां तक आते नहीं, उनको रातों की खामोशी में बहा देता हूँ। यूँ तो मजलिसों में शामिल नज़र आता हूँ, पर सच कहूँ तो मैं खुद से भी नज़रें चुराता हूँ। बातों में हँसी बिखेरता हूँ यूँ, पर अंदर का सूनापन किसी को दिखाता नहीं हूँ। मेरी आँखों के आँसू पढ़ सको तो पढ़ लो, वो सच्चाई हैं, जिनको मैं मानता नहीं हूँ। मुस्कान जो चेहरा सजाए हुए है, वो नकाब है, जिसे मैं उतारता भी नहीं हूँ। चलो दर्द को साथी बना लिया है मैंने, सफ़र तन्हा सही, पर सह लिया है मैंने। लोग समझे न समझे, इसकी परवाह क्यों, खामोशी से हर जख्म को सह लिया है मैंने। जिनसे मोहब्बत थी, वो दूर हो गए, जिनसे रिश्ता था, वो मजबूर हो गए। खुद से बातें कर-करके जी लिया है मैंने, वर्ना सच कहूँ, तो मैं कब का टूट गया होता।                                           - अभय दुबे