चाय और तुम

चाय और तुम


हल्की सी ठंड में 
बालकनी में लिए बैठे है
तेरी यादों का शहर 
दिल में बसाए बैठे है
हाथ में चाय और
यादों में तुम
पंछियों की चहचहाट सुन
लगता है गुन गुना रही हो तुम
कभी कभी सोचता हु
बैठे इस बालकनी में
क्या मेरा ख्याल आता है
तेरे जहन में
इस जगह पर बैठे बैठे
मन में एक भवर सा उमड़ आता है
तेरे ख्यालों में दिल खो सा जाता है
चाय में मिठास
इस चाय के साथ तेरे एहसास
हर सुबह सताते है
बालकनी में लगे झूले भी
तेरी कमी महसूस कराते है
तेरे आने का इंतजार
ये हर हमेशा करते रहते है
इन झूलों के भी मेरी तरह
ऊंचे ऊंचे है ख्वाब
तू हो इस झूले पर हमेशा मेरे साथ
चाय की चुस्की और घर की बात
दोनो बैठे डाले हाथों में हाथ।

- अभय दुबे

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